जीते जी हम तो ग़म-ए-फ़र्दा की धुन में मर गए
कुछ वही अच्छे हैं जो वाक़िफ़ नहीं अंजाम से
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जो चाहिए देखना न देखा मैं ने
जिसे पाला था इक मुद्दत तक आग़ोश-ए-तमन्ना में
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का
ऐ बुत जफ़ा से अपनी लिया कर वफ़ा का काम
लहद में क्यूँ न जाऊँ मुँह छुपाए
ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज़ आया
हर तरह की दिल में चाह कर के छोड़े
फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था