मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम
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ढूँडोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम
हरगिज़ कभी किसी से न रखना दिला ग़रज़
नज़र की बर्छियाँ जो सह सके सीना उसी का है
तमाम उम्र नमक-ख़्वार थे ज़मीं के हम
भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
ये वहम किसी तरह न माक़ूल हुआ
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
किस पे क़ाबू जो तुझी पे नहीं क़ाबू अपना
जैसे मिरी निगाह ने देखा न हो कभी
हज़ार शुक्र मैं तेरे सिवा किसी का नहीं
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया