चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखे
तुम्हारे हुस्न की शरहें लिखी हैं इन रिसालों में
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हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है
जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
हज़ार हैफ़ छुटा साथ हम-नशीनों का
कुछ ऐसा कर कि ख़ुल्द आबाद तक ऐ 'शाद' जा पहुँचें
क्या फ़क़त तालिब-ए-दीदार था मूसा तेरा
ग़म-ए-फ़िराक़ मय ओ जाम का ख़याल आया
तमन्नाओं में उलझाया गया हूँ
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
निगाह-ए-नाज़ से साक़ी का देखना मुझ को
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता