जब किसी ने हाल पूछा रो दिया
चश्म-ए-तर तू ने तो मुझ को खो दिया
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बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
क्यूँ बात छुपाऊँ रिंद-ए-मय-नोश हूँ मैं
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
परवानों का तो हश्र जो होना था हो चुका
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा
था अजल का मैं अजल का हो गया
चालाक हैं सब के सब बढ़ते जाते हैं
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
नज़र की बर्छियाँ जो सह सके सीना उसी का है
हर हाल में आबरू-ए-फ़न लाज़िम है
शहरों में फिरे न सू-ए-सहरा निकले