शहरों में फिरे न सू-ए-सहरा निकले
फ़य्याज़ जो हो वतन के वो क्या निकले
प्यासे आते हैं आप दरिया की तरफ़
प्यासों की तलाश को न दरिया निकले
Allama Iqbal
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फ़क़त शोर-ए-दिल-ए-पुर-आरज़ू था
कहाँ से लाऊँ सब्र-ए-हज़रत-ए-अय्यूब ऐ साक़ी
जिए जाएँगे हम भी लब पे दम जब तक नहीं आता
अर्बाब-ए-क़ुयूद तुझ को क्या देखेंगे
किस बुरी साअत से ख़त ले कर गया
बाज़ अहल-ए-वतन से अब भी दुख पाता हूँ
इस सिलसिला-ए-शुहूद को तोड़ दिया
सुनी हिकायत-ए-हस्ती तो दरमियाँ से सुनी
भरे हों आँख में आँसू ख़मीदा गर्दन हो
सियाहकार सियह-रू ख़ता-शिआर आया
साक़ी के करम से फ़ैज़ ये जारी है
काबा ओ दैर में जल्वा नहीं यकसाँ उन का