छोड़ दो Poetry (page 23)

क़ल्ब-ओ-नज़र के सिलसिले मेरी निगाह में रहे

गाैस मथरावी

न जाने किस तरह बिस्तर में घुस कर बैठ जाती हैं

ग़ज़नफ़र

कई ऐसे भी रस्ते में हमारे मोड़ आते हैं

ग़ज़नफ़र

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

चल दिया नाज़ ज़माने के उठाने वाला

ग़ौसिया ख़ान सबीन

मैं ने हर-चंद कि उस कूचे में जाना छोड़ा

ग़मगीन देहलवी

तुम्हारे दर से उठाए गए मलाल नहीं

ग़ालिब अयाज़

जहाँ ख़राब सही हम बदन-दरीदा सही

ग़ालिब अयाज़

हुआ करेगा हर इक लफ़्ज़ मुश्क-बार अपना

ग़ालिब अयाज़

नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने

ग़ालिब

ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है

जोर्ज पेश शोर

क़दम क़दम पे हैं बिखरी हक़ीक़तें क्या क्या

फ़ुज़ैल जाफ़री

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

आई है कुछ न पूछ क़यामत कहाँ कहाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

चमक सितारों की नज़रों पे बार गुज़री है

फ़ाज़िल अंसारी

मैं ही इक शख़्स था यारान-ए-कुहन में ऐसा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

और क्या मुझ से कोई साहिब-नज़र ले जाएगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ये सोचा है कि तुझ को सोचना अब छोड़ दूँगा मैं

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

कहानी हो कोई भी तेरा क़िस्सा हो ही जाती है

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

तुम मुझे छोड़ के इस तरह नहीं जा सकते

फ़व्वाद अहमद

उन निगाहों को हम-आवाज़ किया है मैं ने

फ़व्वाद अहमद

वो इक लम्हा

फ़ातिमा हसन

मेरी बेटी चलना सीख गई

फ़ातिमा हसन

बिखर रहे थे हर इक सम्त काएनात के रंग

फ़ातिमा हसन

सफ़-ए-मातम पे जो हम नाचने गाने लग जाएँ

फ़रताश सय्यद

मैं अपने दिल की तरह आइना बना हुआ हूँ

फ़रताश सय्यद

तन्हा छोड़ के जाने वाले इक दिन पछताओगे

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर

फ़र्रुख़ जाफ़री

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