छोड़ दो Poetry (page 22)

ऐ जहाँ देख ले!

हबीब जालिब

ये और बात तेरी गली में न आएँ हम

हबीब जालिब

फिर कभी लौट कर न आएँगे

हबीब जालिब

कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए

हबीब जालिब

दयार-ए-'दाग़'-ओ-'बेख़ुद' शहर-ए-देहली छोड़ कर तुझ को

हबीब जालिब

गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट

हबीब मूसवी

डाइरी

गुलज़ार

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा

गुलज़ार

शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई

गुलनार आफ़रीन

दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए

गुलनार आफ़रीन

हाजी तू तो राह को भूला मंज़िल को कोई पहुँचे है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

अबस घर से अपने निकाले है तू

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

तारीकियों में अपनी ज़िया छोड़ जाऊँगा

गुहर खैराबादी

नज़्ज़ारा-ए-रुख़-ए-साक़ी से मुझ को मस्ती है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई

गोपालदास नीरज

बढ़ा जब उस की तवज्जोह का सिलसिला कुछ और

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

वो बे-दिली में कभी हाथ छोड़ देते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

सोते हैं वो आईना ले कर ख़्वाबों में बाल बनाते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फिर वो दरिया है किनारों से छलकने वाला

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए

ग़ुलाम मौला क़लक़

उठने में दर्द-ए-मुत्तसिल हूँ मैं

ग़ुलाम मौला क़लक़

राज़-ए-दिल दोस्त को सुना बैठे

ग़ुलाम मौला क़लक़

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

जो दिलबर की मोहब्बत दिल से बदले

ग़ुलाम मौला क़लक़

रुका हूँ किस के वहम में मिरे गुमान में नहीं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

फ़सील-ए-जिस्म की ऊँचाई से उतर जाएँ

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

कोई सबब तो था कि 'ग़ौस' फ़हम-ओ-ज़का के बावजूद

गाैस मथरावी

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