अबस घर से अपने निकाले है तू
भला हम तुझे छोड़ कर जाएँगे
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Gulzar
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(683) Peoples Rate This
और रब्त जिसे कुफ़्र से है या'नी बरहमन
दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
कभी हाथ भी आएगा यार सच कह
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
हर कोई अपनी फ़हम-ए-नाक़िस में
हाजी तू तो राह को भूला मंज़िल को कोई पहुँचे है
शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया