कभी हाथ भी आएगा यार सच कह
या यूँही तू बातें बनाता रहेगा
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है अफ़्सोस ऐ उम्र जाने का तेरे
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले
शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना
अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा
यूँ तो दिल हर कदाम रखता है
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की