शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना
अगर ज़िंदगी है तो मर जाएँगे
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दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
कब इस जी की हालत कोई जानता है
देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
और रब्त जिसे कुफ़्र से है या'नी बरहमन
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है
आइना है ये जहाँ इस में जमाल अपना है
बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ
उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना
आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए