नाचार है दिल ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के आगे
दीवाने का क्या चलता है ज़ंजीर के आगे
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इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना
महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
तुझ बिन इक दल हो पास रहता है
उम्र गई उल्फ़त-ए-ज़र जी से इलाही न गई
जो जी चाहे है देखूँ माह-ए-नौ कहता है दिल मेरा
दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़