तुझ बिन इक दल हो पास रहता है
वो भी अक्सर उदास रहता है
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आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
क्या रफ़ू करने लगा है जा भी नादाँ यक तरफ़
दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
हर कोई अपनी फ़हम-ए-नाक़िस में
आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
ग़ैर आए पीछे पा गए मुजरे का बार पहले
ग़ैर वफ़ा में पुख़्ता हैं यूँ ही सही प मुझ सा भी
महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
जहाँ में कहाँ बाहम उल्फ़त रही है
नाचार है दिल ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के आगे
टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है