आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है
दुनिया में कोई घर न रहा है न रहेगा
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महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
आइना है ये जहाँ इस में जमाल अपना है
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
टुक देखियो ये अबरू-ए-ख़मदार वही है
अदा को तिरी मेरा जी जानता है
इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना
कहूँ कि शैख़-ए-ज़माना हूँ लाफ़ तो ये है
अबस घर से अपने निकाले है तू
कभी हाथ भी आएगा यार सच कह
हर शजर के तईं होता है समर से पैवंद