ग़ैर वफ़ा में पुख़्ता हैं यूँ ही सही प मुझ सा भी
एक तिरी जनाब में ख़ाम रहा तो क्या हुआ
Rahat Indori
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(655) Peoples Rate This
आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
अश्क आँखों के अंदर न रहा है न रहेगा
तुझ बिन इक दल हो पास रहता है
दिल ब-अज़-काबा है याराँ जुब्बा-साई चाहिए
हैं शैख़ ओ बरहमन तस्बीह और ज़ुन्नार के बंदे
इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना
मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से
इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल
उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना