इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल
चश्म को आबरू है आँसू से
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Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
कभी हाथ भी आएगा यार सच कह
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
करूँ क़त्-ए-उल्फ़त बुतों से व-लेकिन
तुझ बिन इक दल हो पास रहता है
महज़ूँ न हो 'हुज़ूर' अब आता है यार अपना
है अफ़्सोस ऐ उम्र जाने का तेरे
ऐ बहर न तू इतना उमँड चल मिरे आगे
दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
आँखों से इसी तरह अगर सैल रवाँ है