है अफ़्सोस ऐ उम्र जाने का तेरे
कि तू मेरे पास एक मुद्दत रही है
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गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक
शब-ए-हिज्र में एक दिन देखना
जब से गया है वो मिरा ईमान-ए-ज़िंदगी
आइना है ये जहाँ इस में जमाल अपना है
कहूँ कि शैख़-ए-ज़माना हूँ लाफ़ तो ये है
करूँ क़त्-ए-उल्फ़त बुतों से व-लेकिन
देखना ज़ोर ही गाँठा है दिल-ए-यार से दिल
अदा को तिरी मेरा जी जानता है
दीन ओ दुनिया का जो नहीं पाबंद
जो यूँ आप बैरून-ए-दर जाएँगे
बहार इस धूम से आई गई उम्मीद जीने की
हर कोई अपनी फ़हम-ए-नाक़िस में