छोड़ दो Poetry (page 7)

हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत

ताबाँ अब्दुल हई

दिलबर से दर्द-ए-दिल न कहूँ हाए कब तलक

ताबाँ अब्दुल हई

वहशत-ए-दिल ये बढ़ी छोड़ दिए घर सब ने

तअशशुक़ लखनवी

दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद

तअशशुक़ लखनवी

अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ इस क़दर मुझे

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे

सय्यद ज़मीर जाफ़री

ले के अपनी ज़ुल्फ़ को वो प्यारे प्यारे हाथ में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

महाज़-ए-ज़िंदगी के हर मुहारिब से लड़ो साहब

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

तुझ से टूटा रब्त तो फिर और क्या रह जाएगा

सय्यद शकील दस्नवी

क्या भरोसा है उन्हें छोड़ के लाचार न जा

सय्यद सग़ीर सफ़ी

कल क्या होगा

सय्यद मुबारक शाह

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

हर एक चीज़ मयस्सर सिवाए बोसा है

सय्यद काशिफ़ रज़ा

दिल को तुम्हारे रंज की पर्वा बहुत रही

सय्यद काशिफ़ रज़ा

जैसे कि इक फ़्रेम हो तस्वीर के बग़ैर

सय्यद अनवार अहमद

अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी

सय्यद अमीन अशरफ़

दिन के पहले पहर में ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

दिन के पहले पहर मैं ही अपना बिस्तर छोड़ कर

स्वप्निल तिवारी

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

सो उस को छोड़ दिया उस ने जब वफ़ा नहीं की

सुल्तान सुकून

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

सुलतान रशक

आज भी हाथ पे है तेरे पसीने की तरी

सुलैमान अरीब

वो तो हर चाहने वाले पे फ़िदा लगता है

सुहैल सानी

उठिए तो कहाँ जाइए जो कुछ है यहीं है

सुहा मुजद्ददी

ख़ामोशी कलाम हो गई है

सूफ़ी तबस्सुम

सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा

सुबोध लाल साक़ी

ज़ब्त कर ग़म को कि जीने का हुनर आएगा

सुभाष पाठक ज़िया

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

सिराज औरंगाबादी

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

सिराज औरंगाबादी

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