दीपक Poetry (page 37)

मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था

अख़्तर होशियारपुरी

क्या पूछते हो मुझ से कि मैं किस नगर का था

अख़्तर होशियारपुरी

अपने क़दमों ही की आवाज़ से चौंका होता

अख़्तर होशियारपुरी

आँधी में चराग़ जल रहे हैं

अख़्तर होशियारपुरी

रहबर-ए-तब्ल-ओ-निशाँ और ज़रा तेज़ क़दम

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

ना जाने क़ाफ़िले पोशीदा किस ग़ुबार में हैं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

सदा कुछ ऐसी मिरे गोश-ए-दिल में आती है

अख़्तर अंसारी

ख़िज़ाँ में आग लगाओ बहार के दिन हैं

अख़्तर अंसारी

इधर चराग़ जल गए उधर चराग़ जल गए

अख़लाक़ बन्दवी

जला के दिल को रखा सुब्ह-ओ-शाम रोज़-ओ-शब

अख़लाक़ अहमद आहन

उड़ा के फिर वही गर्द-ओ-ग़ुबार पहले सा

अखिलेश तिवारी

जुनून-ए-इश्क़ का जो कुछ हुआ अंजाम क्या कहिए

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

उस ख़ुश-अदा के आइना-ख़ाने में जाऊँगा

अकबर मासूम

ये कौन मेरी तिश्नगी बढ़ा बढ़ा के चल दिया

अकबर हैदराबादी

मिरे ख़्वाबों में ख़यालों में मिरे पास रहो

अकबर अली खान अर्शी जादह

किसी के हिज्र में जीना मुहाल हो गया है

अजमल सिराज

दीवार याद आ गई दर याद आ गया

अजमल सिराज

शाम आई है लिए हाथ में यादों के चराग़

अजय सहाब

लगा के धड़कन में आग मेरी ब-रंग-ए-रक़्स-ए-शरर गया वो

अजय सहाब

बिखरा हूँ जब मैं ख़ुद यहाँ कोई मुझे गिराए क्यूँ

अजय सहाब

अश्कों से कब मिटे हैं दामन के दाग़ यारो

अजय सहाब

जो मिरी शबों के चराग़ थे जो मिरी उमीद के बाग़ थे

ऐतबार साजिद

न गुमान मौत का है न ख़याल ज़िंदगी का

ऐतबार साजिद

मिरी रूह में जो उतर सकें वो मोहब्बतें मुझे चाहिएँ

ऐतबार साजिद

कभी तू ने ख़ुद भी सोचा कि ये प्यास है तो क्यूँ है

ऐतबार साजिद

जी रहे हैं आफ़ियत में तो हुनर ख़्वाबों का है

ऐन ताबिश

हयात-ए-सोख़्ता-सामाँ इक इस्तिअा'रा-ए-शाम

ऐन ताबिश

गुज़रते वक़्त को बुनियाद करने वाला हूँ

ऐन ताबिश

रात इक हादसा हुआ मुझ में

ऐन इरफ़ान

काएनात-ए-ज़ात का मुसाफ़िर

अहमद ज़फ़र

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