चुंबन Poetry (page 3)

तआरुफ़

राही मासूम रज़ा

जान हम तुझ पे दिया करते हैं

इमाम बख़्श नासिख़

न जाने कब वो पलट आएँ दर खुला रखना

इफ़्तिख़ार नसीम

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

हमारे बस में क्या है और हमारे बस में क्या नहीं

हम्माद नियाज़ी

ये महव हुए देख के बे-साख़्ता-पन को

हैरत इलाहाबादी

है वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल-ए-आशुफ़्ता-नवा भी

हाफ़िज़ लुधियानवी

ये हादसा भी शहर-ए-निगाराँ में हो गया

हफ़ीज़ बनारसी

मैं काएनात में

गुलज़ार

क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम

गोपाल मित्तल

आधी रात

फ़िराक़ गोरखपुरी

इश्क़ झेला है तो चेहरा ज़र्द होना चाहिए

फ़े सीन एजाज़

क्यूँ दिया था? बता! मेरी वीरानियों में सहारा मुझे

फरीहा नक़वी

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तकमील

एजाज़ फ़ारूक़ी

इस क़दर नाज़ है क्यूँ आप को यकताई का

दाग़ देहलवी

अच्छी सूरत पे ग़ज़ब टूट के आना दिल का

दाग़ देहलवी

किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी

बशीर बद्र

सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे

बशीर बद्र

कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो

बशीर बद्र

अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे

बशीर बद्र

उस ने कहा!

बाक़र मेहदी

मुजस्समा

अज़ीज़ तमन्नाई

दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था

अज़हर फ़राग़

तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है

आज़ाद गुलाटी

वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे

अतीक़ अंज़र

उन का जश्न-ए-साल-गिरह

असरार-उल-हक़ मजाज़

हज़ार बार निगाहों से चूम कर देखा

असलम आज़ाद

कहीं पे क़ुर्ब की लज़्ज़त का इक़्तिबास नहीं

असलम आज़ाद

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