दूर Poetry (page 6)

हँसी में हक़ जता कर घर-जमाई छीन लेता है

ज़फ़र कमाली

गुमान तक में न था महव-ए-यास कर देगा

ज़फ़र कलीम

दरिया गुज़र गए हैं समुंदर गुज़र गए

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

इक दूर के सफ़र पे रवाना भी हूँ 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

यक़ीं की ख़ाक उड़ाते गुमाँ बनाते हैं

ज़फ़र इक़बाल

वो एक तरहा से इक़रार करने आया था

ज़फ़र इक़बाल

उसी से आए हैं आशोब आसमाँ वाले

ज़फ़र इक़बाल

न घाट है कोई अपना न घर हमारा हुआ

ज़फ़र इक़बाल

मौसम का हाथ है न हवा है ख़लाओं में

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

कैसी रुकी हुई थी रवानी मिरी तरफ़

ज़फ़र इक़बाल

जिस्म के रेगज़ार में शाम-ओ-सहर सदा करूँ

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

दरिया दूर नहीं और प्यासा रह सकता हूँ

ज़फ़र इक़बाल

चमकती वुसअतों में जो गुल-ए-सहरा खिला है

ज़फ़र इक़बाल

बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं

ज़फ़र इक़बाल

अपने इंकार के बर-अक्स बराबर कोई था

ज़फ़र इक़बाल

अभी तो करना पड़ेगा सफ़र दोबारा मुझे

ज़फ़र इक़बाल

मेरे नाज़ुक सवाल में उतरो

ज़फ़र हमीदी

तिरा यक़ीन हूँ मैं कब से इस गुमान में था

ज़फ़र गौरी

शो'ले से चटकते हैं हर साँस में ख़ुशबू के

ज़फ़र गौरी

उस से मेरा तो कोई दूर का रिश्ता भी नहीं

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ

यूसुफ़ ज़फ़र

वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ

यूसुफ़ ज़फ़र

मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से

यूसुफ़ ज़फ़र

ख़ुद-फ़रेबी

यूसुफ़ तक़ी

तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं

यूसुफ़ तक़ी

जाने कितनी देर चलेगी साथ मिरे चमकीली धूप

यूसुफ़ तक़ी

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