दर्द Poetry (page 86)

चाँदनी रात में हर दर्द सँवर जाता है

अब्दुल्लाह जावेद

मस्त अँखियाँ का देख दुम्बाला

अब्दुल वहाब यकरू

गुदाज़-ए-आतिश-ए-ग़म सीं हुई हैं बावली अँखियाँ

अब्दुल वहाब यकरू

फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

छलक जाती है अश्क-ए-गर्म बन कर मेरी आँखों से

अब्दुल रहमान बज़्मी

अबस ढूँडा किए हम ना-ख़ुदाओं को सफ़ीनों में

अब्दुल रहमान बज़्मी

ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल निशात-ए-जाँ गुज़रा

अब्दुल मतीन नियाज़

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

ख़ून जब अश्क में ढलता है ग़ज़ल होती है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

हर आन नई शान है हर लम्हा नया है

अब्दुल मन्नान तरज़ी

शाम-ए-ग़म और सितारों के सिवा

अब्दुल मजीद भट्टी

मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है

अब्दुल हमीद अदम

गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर

अब्दुल हमीद अदम

आता है कौन दर्द के मारों के शहर में

अब्दुल हमीद अदम

हर इंसाँ अपने होने की सज़ा है

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

ग़ुबार-ए-दर्द से सारा बदन अटा निकला

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

बहार बन के ख़िज़ाँ को न यूँ दिलासा दे

अब्दुल हफ़ीज़ नईमी

फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

शख़्सिय्यत की मौसीक़ी

अब्दुल अहद साज़

ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब

अब्दुल अहद साज़

आवाज़ के मोती

अब्दुल अहद साज़

तब-ए-हस्सास मिरी ख़ार हुई जाती है

अब्दुल अहद साज़

लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में

अब्दुल अहद साज़

खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है

अब्दुल अहद साज़

ख़राब-ए-दर्द हुए ग़म-परस्तियों में रहे

अब्दुल अहद साज़

जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया

अब्दुल अहद साज़

जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार

अब्दुल अहद साज़

हर इक लम्हे की रग में दर्द का रिश्ता धड़कता है

अब्दुल अहद साज़

दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है

अब्दुल अहद साज़

बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना

अब्दुल अहद साज़

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