दर्द Poetry (page 85)

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग

अबु मोहम्मद सहर

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

अबु मोहम्मद सहर

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

दिल्ली में दर्द-ए-दिल कूँ कोई पूछता नहीं

आबरू शाह मुबारक

उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो

आबरू शाह मुबारक

तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं

आबरू शाह मुबारक

कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया

आबरू शाह मुबारक

इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो

आबरू शाह मुबारक

दुश्मन-ए-जाँ है तिश्ना-ए-ख़ूँ है

आबरू शाह मुबारक

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

अबरार आज़मी

तुम्हारी बज़्म में जिस बात का भी चर्चा था

अबरार आज़मी

तन्हा उदास शब के सिवा कोई भी न था

अबरार आज़मी

सन्नाटे का दर्द निखारा करता हूँ

अबरार आज़मी

कमरे में धुआँ दर्द की पहचान बना था

अबरार आज़मी

क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा

अबरार अहमद

बेकसी का हाल मय्यत से अयाँ हो जाएगा

अब्र अहसनी गनौरी

फटा हुआ जो गरेबाँ दिखाई देता है

आबिद वदूद

सिर्फ़ कर्ब-ए-अना दिया है मुझे

आबिद मुनावरी

ख़ुद सवाल आप ही जवाब हूँ मैं

आबिद मुनावरी

इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ

आबिद मलिक

श्याम गोकुल न जाना कि राधा का जी अब न बंसी की तानों पे लहराएगा

आबिद हशरी

शिकस्त

आबिद आलमी

दे गया आख़िरी सदा कोई

आबिद आलमी

वो शख़्स क्या है मिरे वास्ते सुनाएँ उसे

अब्दुल्लाह कमाल

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

अभी गुनाह का मौसम है आ शबाब में आ

अब्दुल्लाह कमाल

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