दर्द Poetry (page 2)

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

फ़लक को फ़िक्र कोई मेहर-ओ-माह तक पहोंचे

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों

ज़ुहूर नज़र

दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे

ज़ुहूर नज़र

छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं

ज़ुहूर नज़र

हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है

ज़ुबैर अली ताबिश

आज तो दिल के दर्द पर हँस कर

ज़ुबैर अली ताबिश

पास-ए-पिंदार-ए-तबीअत दिल अगर रख ले तो क्या

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

इक दर्द का सहरा है सिमटता ही नहीं है

ज़िया ज़मीर

अब तो आते हैं सभी दिल को दुखाने वाले

ज़िया ज़मीर

तेरा ग़म भी न हो तो क्या जीना

ज़िया जालंधरी

बुरा न मान 'ज़िया' उस की साफ़-गोई का

ज़िया जालंधरी

अब इस का चारा ही क्या कि अपनी तलब ही ला-इंतिहा थी वर्ना

ज़िया जालंधरी

तन्हा

ज़िया जालंधरी

ताबा कै

ज़िया जालंधरी

शहर-ए-आशोब

ज़िया जालंधरी

कसक

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

दूरी

ज़िया जालंधरी

चाक

ज़िया जालंधरी

बड़ा शहर

ज़िया जालंधरी

अबुल-हौल

ज़िया जालंधरी

आँसू

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

तिरी निगह से इसे भी गुमाँ हुआ कि मैं हूँ

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

गुमाँ था या तिरी ख़ुश्बू यक़ीन अब भी नहीं

ज़िया जालंधरी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

दे गया दर्द-ए-बे-तलब कोई

ज़िया जालंधरी

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