दर्द Poetry (page 4)

कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम

ज़ाहिदा ज़ैदी

कहना पड़ा उन्हीं को मसीहा-ए-वक़्त भी

ज़ाहीदा कमाल

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

तीरा-ओ-तार ज़मीनों के उजाले दरिया

ज़ाहिद फ़ारानी

ख़ुश्क लम्हात के दरिया में बहा दे मुझ को

ज़ाहिद फ़ारानी

नज़्म

ज़ाहिद डार

मेरा वजूद उस को गवारा नहीं रहा

ज़ाहिद चौधरी

हर गुल-ए-ताज़ा हमारे हाथ पर बैअत करे

ज़हीर सिद्दीक़ी

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं

ज़हीर रहमती

हमारे इश्क़ से दर्द-ए-जहाँ इबारत है

ज़हीर काश्मीरी

ये कारोबार-ए-चमन इस ने जब सँभाला है

ज़हीर काश्मीरी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

मौसम बदला रुत गदराई अहल-ए-जुनूँ बेबाक हुए

ज़हीर काश्मीरी

हैं बज़्म-ए-गुल में बपा नौहा-ख़्वानियाँ क्या क्या

ज़हीर काश्मीरी

अब दर्द बे-दयार है और जग-हँसाई है

ज़हीर फ़तेहपूरी

दर्द और दर्द भी जुदाई का

ज़हीर देहलवी

साक़िया मर के उठेंगे तिरे मय-ख़ाने से

ज़हीर देहलवी

कुछ न कुछ रंज वो दे जाते हैं आते जाते

ज़हीर देहलवी

ग़ौग़ा-ए-पंद गो न रहा नौहागर रहा

ज़हीर देहलवी

फ़ित्ना-गर शोख़ी-ए-हया कब तक

ज़हीर देहलवी

दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा

ज़हीर देहलवी

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

जब अधूरे चाँद की परछाईं पानी पर पड़ी

ज़फ़र सहबाई

अमीर-ए-शहर इस इक बात से ख़फ़ा है बहुत

ज़फ़र सहबाई

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

लबों पर प्यास सब के बे-कराँ है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

फिर सर-ए-सुब्ह किसी दर्द के दर वा करने

ज़फ़र इक़बाल

लब पे तकरीम-ए-तमन्ना-ए-सुबुक-पाई है

ज़फ़र इक़बाल

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

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