यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं
यही रोना है हम क्यूँ रो रहे हैं
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(736) Peoples Rate This
दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे
सतही लोगों में गहराई होती है
किसी दिन उक़्दा-ए-मुश्किल भी खुलता
ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से
और एहसास-ए-जिहालत बढ़ गया
ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है
आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए
बहुत कुछ वस्ल के इम्कान होते