ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
बहुत रोएँगे तुम को याद कर के
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और एहसास-ए-जिहालत बढ़ गया
आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए
सतही लोगों में गहराई होती है
यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं
ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है
सदियों में कोई एक मोहब्बत होती है
दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे
किसी दिन उक़्दा-ए-मुश्किल भी खुलता
बहुत कुछ वस्ल के इम्कान होते
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से