सतही लोगों में गहराई होती है
ये डूबे तो पानी गहरा होता है
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जिस की कुछ ताबीर न हो
ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है
यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं
कुछ न होते होते इक दिन ये हुआ
ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे
बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से
किसी दिन उक़्दा-ए-मुश्किल भी खुलता