जिस की कुछ ताबीर न हो
ख़्वाब उसी को कहते हैं
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Parveen Shakir
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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
बहुत कुछ वस्ल के इम्कान होते
यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से
सदियों में कोई एक मोहब्बत होती है
कुछ न होते होते इक दिन ये हुआ
और एहसास-ए-जिहालत बढ़ गया
बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी
आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए