और एहसास-ए-जिहालत बढ़ गया
किस क़दर पढ़ लिख के जाहिल हो गए
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Love Poetry
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Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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ख़ुशी से अपना घर आबाद कर के
यूँ ही हम दर्द अपना खो रहे हैं
कुछ न होते होते इक दिन ये हुआ
इशारे मुद्दतों से कर रहा है
जिस की कुछ ताबीर न हो
ज़माने भर को है उम्मीद उसी से
सतही लोगों में गहराई होती है
ज़र्द चेहरे को बड़े शौक़ से सब देखते हैं
दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे