ग़म-ए-हबीब नहीं कुछ ग़म-ए-जहाँ से अलग
ये अहल-ए-दर्द ने क्या मसअले उठाए हैं
Habib Jalib
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
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Javed Akhtar
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
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ज़िंदगी ख़ाक-बसर शोला-ब-जाँ आज भी है
गोया चमन चमन न था
होश-मंदी से जहाँ बात न बनती हो 'सहर'
बर्क़ से खेलने तूफ़ान पे हँसने वाले
काम हर ज़ख़्म ने मरहम का किया हो जैसे
बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं
जब ये दावे थे कि हर दुख का मुदावा हो गए
रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे
इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके
सब की आँखों में जो समाया था
फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब