नदी Poetry (page 33)

जहाँ भर में मिरे दिल सा कोई घर हो नहीं सकता

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़ीस्त का ख़ाली कटोरा आप ही भर जाएगा

ग़ुलाम हुसैन अयाज़

दिल की मिट्टी चुपके चुपके रोती है

ग़ुफ़रान अमजद

मुहीत-ए-हुस्न जो अब दम-ब-दम चढ़ाव पे है

ग़ज़नफ़र अली ग़ज़नफ़र

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

ग़ुरूर-ए-नाज़ दिखा तुझ में कितना जौहर है

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

तुम्हें ख़बर भी है ये तुम ने किस से क्या माँगा

ग़नी एजाज़

क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन

ग़ालिब

न बंधे तिश्नगी-ए-ज़ौक़ के मज़मूँ 'ग़ालिब'

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया

ग़ालिब

ज़िक्र मेरा ब-बदी भी उसे मंज़ूर नहीं

ग़ालिब

ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक

ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता

ग़ालिब

रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़

ग़ालिब

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल-कुशा मौज-ए-शराब

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

लताफ़त बे-कसाफ़त जल्वा पैदा कर नहीं सकती

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना

ग़ालिब

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है

ग़ालिब

हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

दर-ख़ूर-ए-क़हर-ओ-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए

ग़ालिब

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

ग़ालिब

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