नदी Poetry (page 31)

वो हम-कनार है जाम-ए-शराब हाथ में है

हफ़ीज़ जौनपुरी

आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका

हफ़ीज़ जालंधरी

मेरी शाएरी

हफ़ीज़ जालंधरी

इरशाद की याद में

हफ़ीज़ जालंधरी

'इक़बाल' के मज़ार पर

हफ़ीज़ जालंधरी

फ़ुर्सत की तमन्ना में

हफ़ीज़ जालंधरी

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

आख़िरी रात

हफ़ीज़ जालंधरी

इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया

हफ़ीज़ जालंधरी

ये और बात कि लहजा उदास रखते हैं

हफ़ीज़ बनारसी

रात का नाम सवेरा ही सही

हफ़ीज़ बनारसी

कोई बतलाए कि ये तुर्फ़ा तमाशा क्यूँ है

हफ़ीज़ बनारसी

मैं नहीं जा पाऊँगा यारो सू-ए-गुलज़ार अभी

हबीब तनवीर

हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में

हबीब जालिब

लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले

हबीब मूसवी

जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले

हबीब मूसवी

यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता

गुलज़ार

किनारे पर कोई आया था

गुलज़ार

वो ख़त के पुर्ज़े उड़ा रहा था

गुलज़ार

तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए

गुलज़ार

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

एक आँसू याद का टपका तो दरिया बन गया

गुलनार आफ़रीन

याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था

गुलनार आफ़रीन

वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा

गुलनार आफ़रीन

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

कितने दरिया इस नगर से बह गए

गुलाम जीलानी असग़र

वरक़ वरक़ जो ज़माने के शाहकार में था

गुहर खैराबादी

वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना

गुहर खैराबादी

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