एक आँसू याद का टपका तो दरिया बन गया
ज़िंदगी भर मुझ में एक तूफ़ान सा पलता रहा
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दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए
वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा
हमें भी अब दर ओ दीवार घर के याद आए
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं
किन शहीदों के लहू के ये फ़रोज़ाँ हैं चराग़
शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है
शजर-ए-उम्मीद भी जल गया वो वफ़ा की शाख़ भी जल गई
बग़ैर सम्त के चलना भी काम आ ही गया
याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था
हम सर-ए-राह-ए-वफ़ा उस को सदा क्या देते
एक परछाईं तसव्वुर की मिरे साथ रहे