हमें भी अब दर ओ दीवार घर के याद आए
जो घर में थे तो हमें आरज़ू-ए-सहरा थी
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शायद अभी कमी सी मसीहाइयों में है
न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी
याद करने का तुम्हें कोई इरादा भी न था
सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं
हम सर-ए-राह-ए-वफ़ा उस को सदा क्या देते
दिल ने इक आह भरी आँख में आँसू आए
न साथ देगा कोई राह आश्ना मेरा
ये तिलिस्म-ए-मौसम-ए-गुल नहीं कि ये मोजज़ा है बहार का
हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए
वो चराग़-ए-ज़ीस्त बन कर राह में जलता रहा