आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका
एक क़तरे ने डुबोया मुझे दरिया हो कर
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नासेह को बुलाओ मिरा ईमान सँभाले
दिल ने आँखों तक आने में इतना वक़्त लिया
दिल अभी तक जवान है प्यारे
हमेशा के लिए ख़ामोश हो कर
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था
बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
ऐ मिरी जान अपने जी के सिवा
उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे
कृष्ण कन्हैया