अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'
मानते हैं सब मिरे उस्ताद को
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ओ हसरत-ए-विसाल न देख इस तरह न देख
कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
हमेशा के लिए ख़ामोश हो कर
अभी मीआद बाक़ी है सितम की
कल ज़रूर आओगे लेकिन आज क्या करूँ
दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ
ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे
ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में
सामने दुख़्तर-ए-बरहमन है
जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ
सख़्त-गीर आक़ा
मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में