अभी मीआद बाक़ी है सितम की
मोहब्बत की सज़ा है और मैं हूँ
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उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'
रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं
ज़िंदगी का लुत्फ़ भी आ जाएगा
ब-ज़ाहिर सादगी से मुस्कुरा कर देखने वालो
उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे
फ़ुर्सत की तमन्ना में
मस्तों पे उँगलियाँ न उठाओ बहार में
अजनबियों के शहर में गुम हूँ मगर मैं कौन हूँ
मेरी क़िस्मत के नविश्ते को मिटा दे कोई
कृष्ण कन्हैया