मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में
परेशानियाँ ही परेशानियाँ हैं
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आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रो कर
कृष्ण कन्हैया
देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'
इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया
ऐ मिरी जान अपने जी के सिवा
बुत कहते हैं मर जा मर जा
इश्क़ ने हुस्न की बे-दाद पे रोना चाहा
है मुद्दआ-ए-इश्क़ ही दुनिया-ए-मुद्दआ
कव्वा
वफ़ादारियाँ सख़्त नादानियाँ हैं
जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ
दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका