बुत कहते हैं मर जा मर जा
हुक्म-ए-ख़ुदा है और ठहर जा
हाए को नारा-ए-हू से बदल दे
यार 'हफ़ीज़' ये काम तू कर जा
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आने वाले किसी तूफ़ान का रोना रो कर
किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर
वो क़ाफ़िला आराम-तलब हो भी तो क्या हो
रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा
हैरान हो के मुँह मिरा तकते हैं बार बार
देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'
तौबा-नामा
हमेशा के लिए ख़ामोश हो कर
कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा
मुद्दतों तक जो पढ़ाया किया उस्ताद मुझे
मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं