बात भी जिस से अब नहीं मुमकिन
आओ उस बे-वफ़ा की बात करें
शैख़-साहिब को ले के साथ चलें
बुत-कदे में ख़ुदा की बात करें
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Parveen Shakir
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
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कैसे बंद हुआ मय-ख़ाना अब मालूम हुआ
मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में
ज़िंदगी का लुत्फ़ भी आ जाएगा
रक़्क़ासा
इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
मोहब्बत करो और निबाहो तो पूछूँ
रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं
तसव्वुर में भी अब वो बे-नक़ाब आते नहीं मुझ तक
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था
मबादा फिर असीर-ए-दाम-ए-अक़्ल-ओ-होश हो जाऊँ
भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा