मोहब्बत करो और निबाहो तो पूछूँ
ये दुश्वारियाँ हैं कि आसानियाँ हैं
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वफ़ादारियाँ सख़्त नादानियाँ हैं
अहबाब का शिकवा क्या कीजिए ख़ुद ज़ाहिर ओ बातिन एक नहीं
हैरान हो के मुँह मिरा तकते हैं बार बार
ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं
ब-ज़ाहिर सादगी से मुस्कुरा कर देखने वालो
न कर दिल-जूई ऐ सय्याद मेरी
सुनाता है क्या हैरत-अंगेज़ क़िस्से
नासेह को बुलाओ मिरा ईमान सँभाले
हुस्न की आँख अगर हया न करे
दिन की सूरत नज़र आते ही मिरी रात हुई
ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है
कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया