हुस्न की आँख अगर हया न करे
इश्क़ ज़िंदा रहे ख़ुदा न करे
किस क़दर बे-कसी का आलम है
चाहता हूँ कोई दुआ न करे
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मिरा तजरबा है कि इस ज़िंदगी में
अगर मौज है बीच धारे चला चल
हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा
शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को
तन्हाई-ए-फ़िराक़ में उम्मीद बार-हा
फिर दे के ख़ुशी हम उसे नाशाद करें क्यूँ
अब तो कुछ और भी अंधेरा है
दिल अभी तक जवान है प्यारे
इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे
इक बार फिर वतन में गया जा के आ गया
जो भी है सूरत-ए-हालात कहो चुप न रहो