इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
ये मय है ख़ुद-कशीद इसे मुस्कुरा के पी
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तौबा-नामा
एक लड़की शादाँ
जहाँ क़तरे को तरसाया गया हूँ
'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली
अब ख़ूब हँसेगा दीवाना
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने
बसंती तराना
दिल ने आँखों तक आने में इतना वक़्त लिया
दिल अभी तक जवान है प्यारे
ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में
देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़'
उभरे जो ख़ाक से वो तह-ए-ख़ाक हो गए