इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं वैसा न हो जाए
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यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात
चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं
कम-बख़्त दिल बुरा हुआ तिरी आह आह का
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
हाँ मैं तो लिए फिरता हूँ इक सजदा-ए-बेताब
क्यूँ हिज्र के शिकवे करता है क्यूँ दर्द के रोने रोता है
शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
फिर लुत्फ़-ए-ख़लिश देने लगी याद किसी की
कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए
रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं