सुनाता है क्या हैरत-अंगेज़ क़िस्से
हसीनों में खोई हो जिस ने जवानी
Wasi Shah
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हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं
अभी तो मैं जवान हूँ
तौबा-नामा
वो सरख़ुशी दे कि ज़िंदगी को शबाब से बहर-याब कर दे
ऐ दोस्त मिट गया हूँ फ़ना हो गया हूँ मैं
ये भी इक धोका था नैरंग-ए-तिलिस्म-ए-अक़्ल का
वो अब्र जो मय-ख़्वार की तुर्बत पे न बरसे
चले थे हम कि सैर-ए-गुलशन-ए-ईजाद करते हैं
इन तल्ख़ आँसुओं को न यूँ मुँह बना के पी
'इक़बाल' के मज़ार पर
फिर लुत्फ़-ए-ख़लिश देने लगी याद किसी की