हमेशा के लिए ख़ामोश हो कर
नई तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ वाले ने मारा
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मिरे डूब जाने का बाइस न पूछो
है मुद्दआ-ए-इश्क़ ही दुनिया-ए-मुद्दआ
हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा
हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
हुस्न की आँख अगर हया न करे
हाँ मैं तो लिए फिरता हूँ इक सजदा-ए-बेताब
मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का
तेरे कूचे में है सकूँ वर्ना
ये और दौर है अब और कुछ न फ़रमाए
ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िर
'हफ़ीज़' अहल-ए-ज़बाँ कब मानते थे
ज़िक्र उस्ताद-ए-फ़न का जाने दे