'हफ़ीज़' अहल-ए-ज़बाँ कब मानते थे
बड़े ज़ोरों से मनवाया गया हूँ
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यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात
दिल लगाओ तो लगाओ दिल से दिल
कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया
नहीं इताब-ए-ज़माना ख़िताब के क़ाबिल
आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
ये क्या मक़ाम है वो नज़ारे कहाँ गए
दिल अभी तक जवान है प्यारे
ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िर
दिल सभी कुछ ज़बान पर लाया
देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़
आशिक़ सा बद-नसीब कोई दूसरा न हो
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब