नहीं इताब-ए-ज़माना ख़िताब के क़ाबिल
तिरा जवाब यही है कि मुस्कुराए जा
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यरान-ए-बे-बिसात कि हर बाज़ी-ए-हयात
मिटने वाली हसरतें ईजाद कर लेता हूँ मैं
रंग बदला यार ने वो प्यार की बातें गईं
तौबा-नामा
किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं
सख़्त-गीर आक़ा
इलाही एक ग़म-ए-रोज़गार क्या कम था
दिल लगाओ तो लगाओ दिल से दिल
अब मुझे मानें न मानें ऐ 'हफ़ीज़'
आँख कम-बख़्त से उस बज़्म में आँसू न रुका
बुत कहते हैं मर जा मर जा
निगाह-ए-आरज़ू-आमोज़ का चर्चा न हो जाए