किस मुँह से कह रहे हो हमें कुछ ग़रज़ नहीं
किस मुँह से तुम ने व'अदा किया था निबाह का
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आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था
तिरे दिल में भी हैं कुदूरतें तिरे लब पे भी हैं शिकायतें
तौबा-नामा
फिर दे के ख़ुशी हम उसे नाशाद करें क्यूँ
मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का
चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हों मैं
वफ़ा जिस से की बेवफ़ा हो गया
देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़
मुझे शाद रखना कि नाशाद रखना
दिल को ख़ुदा की याद तले भी दबा चुका
मिल जाए मय तो सज्दा-ए-शुकराना चाहिए