सामने दुख़्तर-ए-बरहमन है
आज औसान का ख़ुदा हाफ़िज़
जान देने से हिचकिचाता हूँ
मिरे ईमान का ख़ुदा हाफ़िज़
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मदफ़न-ए-ग़रीबाँ है आओ फ़ातिहा पढ़ लें
मौत के चेहरे पे है क्यूँ मुर्दनी छाई हुई
ओ हसरत-ए-विसाल न देख इस तरह न देख
ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे
बुत-कदे से चले हो काबे को
ज़िक्र उस्ताद-ए-फ़न का जाने दे
मुझे तो इस ख़बर ने खो दिया है
वफ़ादारियाँ सख़्त नादानियाँ हैं
किसी के रू-ब-रू बैठा रहा मैं बे-ज़बाँ हो कर
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न था
इलाही एक ग़म-ए-रोज़गार क्या कम था
ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा